Sunday, January 15, 2017



About Films


Satya Prakash's POV



गाँधीजी के अवदान विलक्षण हैं !

महात्मा गाँधी दुनियां के जनमानस का बौद्धिक हिस्सा के साथ भारत के स्वन्त्रता-आंदोलन के अग्रणी नेता और विचारक रहे ! ये एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आज भी हत्या किये जाने के बाद ज़िंदा है ! हमारे रुपये से लेकर साहित्य , राजनीति , इतिहास ,नागरिक शास्त्र , कला और सिनेमा में महात्मा गाँधी हैं ! दुनिया के कई गुलाम देशों ने महात्मा गाँधी के सिद्धांत " सत्य और अहिंसा" से अपने को आज़ाद करवाया ! दक्षिण -अफ्रीका की प्रीटोरिया की नस्ल-भेदी सरकार के खिलाफ पहला कानूनी लड़ाई आरम्भ की ! 


१८९३ का वो काला दिन गाँधी के जीवन को महान बनाने वाला दिन साबित हुआ ! दक्षिण-अफ्रीका का डरबन शहर का वो छोटा सा स्टेशन  पिएटरमैरिट्ज़बर्ग पर चलती ट्रैन से बर्रिस्टर मोहनदास करमचंद गाँधी को गोरे अभिजात्य -यात्रियों ने फेंक दिया था सिर्फ इसीलिये कि गाँधी सांवले थे ! 


मोहनदास करमचंद गाँधी इंडियन डायस्पोरा के एक आदमी का केस लड़ने गए थे ! इंडियन डायस्पोरा के साथ-साथ ,वहां के काले रंग के नस्ल वाले मूल निवासियों के साथ भेद-भाव किया जाता था और उन्हें गुलामों की तरह इस्तेमाल किया जाता था ! गाँधी का महात्मा बनने की प्रक्रिया आरम्भ होती है , वो भारत नहीं लौटते हैं और वहां रहकर इन नस्लभेदी सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करते हैं !


 प्रीटोरिया सरकार की पुलिस और फौज की बर्बर उपिस्थिति में प्रीटोरिया सरकार के सरकारी मसौदे को जलाते हैं और मार खाते हैं ! उन्हें गिरफ्तार किया जाता है !
१९१५ में गाँधी भारत आते हैं और सारे हिंदुस्तान को थर्ड क्लास के रेलवे कम्पार्टमेंट में बैठकर देश को जानते हैं !जैसे-जैसे देश के ह्रदय-स्थल की तरफ बढ़ते जाते हैं , उनके शरीर से पेंट-शर्त , कोर्ट , टाई सभी उतरते जाते हैं ! चम्पारण के किसान की गरीबी, मुफलिसी ने उन्हें यूँ प्रताड़ित किया कि कमर से नीचे ,घुटने के ऊपर तक उनकी धोती रह गयी थी !इस देश की गुलाम और गरीब जनता की तरह हो गए थे ! जनता की उम्मीद बनकर  भारतीय स्वाधीनता-आंदोलन के नेता बन गए थे ! गाँधी जहाँ जाते , लाखों की भीड़ उन्हें देखने के लिए नहीं आती थी बल्कि अपनी गरीबी,गुलामी से आज़ादी की गुहार करने जुटती थी!

 दक्षिण अफ्रीका के नस्ल भेद के विरूद्ध लड़ाई ने ही भारतीय समाज का सबसे बड़ा कलंक "जाति-व्यवस्था " के विरूद्ध भी लड़ाई छेड़ी जो सुधार-मूलक था ! शुद्र भी हरि के जन हैं और उन्हें "हरिजन" कहा  ! आदर्श और ह्रदय-परिवर्तन में उन्हें अगाध विश्वास था ! जाति का प्रचंड -विरोध  अपनी पत्नी बा से लड़ाई की वजह भी बना !

 गांधी महात्मा बन चुके थे ! विश्व कवि रबिन्द्रनाथ टैगोर ने मोहनदास करमचंद गांधी के संत की तरह जीवन को देख कर ही उन्हें "महात्मा" की महान उपाधि से गौरवान्वित किया था ! 

 आज उनकी शालीनता , उनके स्वदेशी चरखे को भले राजनीति के लिए हटाने की कोशिश कर ले , भले ही प्रधानमंत्री मोदी जी 1893 के " ट्रैन-यात्रा  के नस्ल-भेदी " एपिसोड को वहां जाकर जीवंत कर ट्रैन में बैठकर उसी स्टेशन पर उतरते और भाषण देते हैं ! मोदी जी ने महात्मा गाँधी और नेल्सन- मंडेला को विश्व के दो महान नेता ज़रूर बताते हैं  लेकिन खादी दिवस पर गाँधी के फोटो को हटाकर स्वयं को स्थापित कर, उस महान विभूति गाँधी के सम्मान को हल्का भी कर जाते हैं !



विश्व भर में  गाँधी की महिमा को मिटाना बहुत मुश्किल है ! इसीलिए, गाँधी के नाम से पूरी दुनियां में पुस्तक लिखी  जाती है , गाँधी - दर्शन पढ़ाया जाता है , गाँधी पर फ़िल्में बनती हैं , विदेशों में, प्रतिष्ठानों और  सडको के नाम उनके नाम पर रखा जाता है !   
महात्मा गाँधी अपनी आदर्शवादी सिद्धांत की विशालता में उतने ही महान हैं जितना कि शहीद- ऐ -आज़म भगत सिंह अपनी क्रांतिकारिता में ! 


दोनों के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते हुए भी उन्हें सलाम तो कर ही सकते हैं !

No comments:

Post a Comment