Friday, January 13, 2017



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Satya Prakash's POV

निंदक आत्महंता होते हैं !
मुम्बई वैसे भी तटीय शहर है , समंदर में इतना पानी है कि अच्छे -अच्छे तैराक भी हाफ-हाफ कर दम तोड़ देते हैं, इसीलिए दुःसाहस का आयोजन भी पूर्व-तैयारी के साथ करना चाहिए वरना समंदर का किनारा तो बहुत बेहतर है ! घुटने तक के पानी में जाकर डूबते सूरज को देख लो, लगता है आग का गोला भी समंदर के अंदर समां जाएगा लेकिन सूरज आत्महंता नहीं होता है ! वो आत्महत्या नहीं करना चाहता है और इसीलिए सूरज दुनिया को प्रदीप्त करने के लिए खुद आग के गोले की तरह जलता रहता है ! जलन और प्रदीप्त होना उसके जीवन का कर्तव्य है !समंदर के गहरे पानी में जाएगा तो मौत तय है !



समंदर बहता रहता है , तट से टकराता और अपने जलीय परिवेश के ह्रदय -तल में लौट जाता है ! समंदर अपने तट से बाहर निकलता है तो समंदर मनुष्य-सभ्यता को ख़त्म कर देता है ! समंदर का पानी समंदर में लौटता तो है लेकिन जीर्ण-शीर्ण मानवीय उपनिवेश में छोडे गए जल में रवानगी नहीं होती है , वो जल सड़ जाता है , दुर्गन्ध उससे निकलता है ! समंदर का अस्तित्व का तिरोहण अपनी तटीय -रेखा के परे विनाश-लीला में द्रष्टव्य है !
आत्महंता के इरादों से निकलकर ही समंदर और सूरज का अस्तित्व है ! समंदर अपने तट पर मनुष्यों को आमंत्रित कर अपनी लहरों की रवानगी से मनुष्य के जीवन में गति भरता है , ऊर्जावान बनाता है, सकारात्मक बनाता है !
"अधगल गगरी ,छलकत जाए !" इस कहावत से दूर रहना चाहिए ! हमेशा गगरी में पानी भर लीजिये वरना आधी भरी गगरी घर जाते -जाते बिलकुल खाली हो जायेगी ! ज्ञान के साथ भी ऐसा ही होता है ! ज्ञान परस्पर आदान-प्रदान से बढ़ता है , जितना होगा आप विनम्र होते जाएंगे , झुकते चले जाएंगे ,विनयशील होते चले जाएंगे !



ज्ञान कभी घमण्ड नहीं बांटता है जब ऐसा होता है तो ज्ञान अपनी सीमा से परे जाकर विनाश-लीला करता है , सड़ांध पैदा करता है !
इसीलिए आत्महंता का ख्याल से बचना होगा ! जबतक अपने कर्म से परे दूसरे की निंदा में लगे ,आत्महंता की स्थिति आरम्भ हो जाती है ! सामने मीठी-मीठी बातें और पीठ पीछे निंदा...ये तो विनाश-लीला है !


फ़िल्मी दुनियां के निंदक हिंसक होते हैं ! खून तो नहीं करेंगे लेकिन नुकसान की भरपाई मुश्किल हो जाती है ! फिल्म का हर प्रोफेशनल का चरित्र उद्दात्त होना चाहिए क्योंकि हम फिल्मों में हर किरदार का उद्दात्तीकरण करते हैं ! चाहे वो छोटा हो या बड़ा , उन्हें उनका चरित्र जीना है लेकिन आम जीवन में प्रोफेशनल छिछोरे ज़्यादा ही मिलते हैं ! वो आपका काम अच्छा नहीं करेंगे लेकिन ख़राब ज़रूर कर देंगे ! आपके साथ उठेंगे-बैठेंगे , सीखेंगे , निश्चित रूप से आप भी सीखते हैं लेकिन अलग होते ही पीठ पीछे निंदा शुरू और ऐसे लोग बुरी तरह से क्रोधी, बेज़ार, मनोरोगी और दुनिया को ठेंगे पर रखते हैं !
ये विनाश लीला है !







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