Saturday, December 17, 2016




About Films

Satya Prakash's POV

नोटबंदी : सरकार व् विपक्ष से जनता दूर
( फिल्म भी टली व रोज़गार भी ख़त्म )
नोटबंदी ने किसी की शादी टाल दी तो किसी का रोज़गार टल गया, किसी का रोज़गार छीन गया ! किसी ने अपनी ज़िन्दगी खो दी! एटीएम ने ज़िन्दगी के रफ़्तार को भी धीमा कर दिया !
मुझ पर गाज गिरी ! फिल्म का मुहूर्त होना था ! टल गया ! बड़ी मुश्किल से निर्माता मिल पाता है ! मिला लेकिन पता नहीं अब वो फिल्म कब शुरू करेंगे?फिल्म "थिंकिंग ऑफ़ हिम " की शूटिंग के बाद से सिलसिला शुरू हुआ था ! बहुत उल्लास में हमसब थे ! ८ नवम्बर की घोषणा के बाद आशंका तो हुयी थी लेकिन निर्माता ने कहा कि फिल्म तो हम बनाएंगे और ज़रूर बनाएंगे ! सफ़ेद रकम से बनाएंगे ! नए कलाकारों को लेकर बनाएंगे लेकिन ११ दिसम्बर का मुहूर्त निर्माता ने टाल दिया ! हम फुले ना समां रहे थे लेकिन उल्लास का गुब्बारा फुस्स होकर गिर गया ! निर्माता ने फ़ोन उठाना बंद कर दिया ! आज उनका फ़ोन ज़रूर अँधेरे में रौशनी के जगमगाने जैसा लगा और कहा कि कुछ दिनों में फिल्म विधिवत रूप से आरम्भ करेंगे !


नोटबंदी एक बहाना हो सकता है लेकिन पैसा का आवाजाही तो लगभग रूक सा गया है ! हमने चेक -भुगतान-प्रक्रिया से फिल्म "थिंकिंग ऑफ़ हिम" की शूटिंग पश्चिम बंगाल में पूरी की लेकिन प्रतिदिन की शूटिंग में खुदरा पैसा का खर्च होना ज़रूरी होता है ! निर्माता सूरज कुमार कुछ कॅश का भुगतान वॉउचर पर हस्ताक्षर करके करते थे ! फिल्म-निर्माण-प्रक्रिया में कुछ जूनियर आर्टिस्ट और दिहाड़ी पर काम करने वाले को प्रतिदिन खुदरा पैसा भुगतान करना पड़ता है लेकिन आज की तारीख में ये मुमकिन नहीं है ! स्थापित प्रोडक्शन हाउस की साख होती है तो इस तरह के कर्मिक भोजन और प्रतिदिन यात्रा -भत्ता पर काम कर रहे हैं ! इस उम्मीद से आगे निर्माता पैसा दे देंगे ! नए निर्माता की साख नहीं होने के कारण ऐसी प्रक्रिया अपनाना मुश्किल है ! हमारा निर्माता नया है!
ऐसा बहुत सारे नए फिल्म-प्रोजेक्ट और धारावाहिक टीवी शो के साथ हुआ है ! पुराना किसी तरह से मॅनेज हो रहा है !
किसी ने कहा कि नोटबंदी पर फिल्म क्यों नहीं बनाते ? बहुत मुश्किल है सेवा-भाव से जुड़े लोग नोटबंदी पर फिल्म को सेंसर भी नहीं होने देंगे ! देश का सत्तर साल का भ्र्ष्टाचार , काला धन एक झटके में ख़त्म हुआ है और नोटबंदी पर सकारात्मक व्यंग्य को लेकर बनने वाली फिल्म क्यों जनता की बीच जाने देंगे !
काला-धन स्विस-बैक से कैसे भारत आता है और हर आदमी के बैंक अकाउंट में पंद्रह लाख रुपये जमा हो जाता है ! अगर ये फिल्म बनती तो देश का प्रधानमंत्री भी खुश हो जाते लेकिन शायद ये अब न बने ! हम कालाधन से आज़ाद भारत में एक काला राजनीतिक इतिहास-निर्माण-प्रक्रिया की तरफ बढ़ रहे हैं ,शायद सत्तर सालों के इतिहास से मुक्त एक नए प्रकार का काला-राजनीतिक -इतिहास-निर्माण ! सरकार और विपक्ष की सहभागिता से ही ऐसा संभव है !
सत्तर साल के इतिहास को बनाने या बिगाड़ने में मेरा, आपका, सारी पार्टियों का भी योगदान होगा ! हमारी सरकार इनसे आज़ाद होना चाहती है ! कन्हैया कुमार का "आज़ादी का नारा" का असर इस सरकार पर भी है ! देश का तकनीकी , सौर-ऊर्जा , वैज्ञानिक संसथान , अंतरिक्ष-विज्ञान , बड़े-बड़े उद्योग , नव-रत्न , बड़े-बड़े-विश्विद्यालय , स्कूल , देश के अंदर सरकारी हॉस्पिटल का अच्छा-खास नेटवर्क, कंप्यूटर , डिजिटल इंडिया , बड़ी-बड़ी , लंबी सडकों से आज़ादी का एक नया इतिहास कायम होगा !
हमारी या किसी की ज़िन्दगी के सपनो के लिए संघर्ष और उपलब्धियों से आज़ादी ज़रूरी है ! सरकार और विपक्ष अब एक जैसा लग रहा है ! शायद सरकार विपक्ष की इस भूमिका से खुश भी हो ले लेकिन सरकार और उसको संचालित करनेवाली भाजपा भी मौन जनता की आँखों में एक सवाल लिए टहल रही है ! जनता को इन राजनीतिक पार्टीयों से भी आज़ादी चाहिए ! एक नए विकल्प की तलाश आज की नोटबंदी राजनीति से शुरू होना चाहिए ! वाम , दक्षिण , जातिवादी और सेंट्रिस्ट पार्टियों से आज़ादी !
हम तो गरीब जनता हैं ! हम तो बहुत चीज़ों से आज़ाद हैं ! लाइन में खड़ा करके हमारी ज़िन्दगी से भी हमें आज़ाद करा रहे हो !सरकार और विपक्ष के धरातल पर आने से लगता है कि कांग्रेस, समाजवादी , जेड यू, राजद , वामपंथ आदि सभी दक्षिणपंथ सरकार की " सत्तर-वर्षीय विकास के इतिहास से आज़ादी की प्रस्तावना" पर हस्ताक्षर कर चुके हैं !
श्रमिक वर्ग को रोटी मिले या न मिले , फिल्म बने या न बने ! वर्किंग क्लास सत्तर-वर्षीय विकास या उसके अंदर भविष्य के लिए छुपी सकारात्मक सोच से सरकार और विपक्ष को आज़ाद नहीं होने देंगे !


मामला पूरा आर्थिक है ! आर्थिक सरोकारों से ही ज़िंदगी और रोज़गार चलती है ! जाति और धर्म की तुष्टिकरण से नहीं ! मंदिरें भी नोटबंदी के समय कालाधन को सफ़ेद करने का केंद्र बना ! भ्र्ष्टाचार नोटबंदी से नहीं रुकेगी वरना बैंक से इतने बड़े पैमाने पर नए नोट नहीं निकलते !
सम्पूर्ण हिंसक राष्ट्रवाद का उभरता नाग आर्थिक उथल-पुथल में दब कर लहू -लुहान हो गया है ! इसे दूध पिलाने की कोशिश ज़रूर होगी लेकिन आर्थिक-मोर्चों पर विफल और नोटबंदी के बाद का आर्थिक मंदी जनता को तनाव से मुक्त नहीं रख पायेगा ! गौ-रक्षा, गौ-मूत्र , लव-जेहाद और घर-वापसी और हिंसक राष्ट्रवाद अर्थ -तंगी में दम तोड़ देंगे !

नोटबंदी के बाद या ३० दिसम्बर के बाद जनता खुद-ब-खुद अपना नेतृत्व हाथ को हवा में फैलाते करेंगी ! सरकार दबा नहीं सकेगी , कितने इंसानो से ये सरकार आज़ादी चाहेगी और विपक्ष को देख कर जनता भागेगी !
अभी भी संभल जाओ ! मुझे राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्त्ता नहीं बनना है ! गुस्सा आता है तो सत्य का उदघाटन हो जाता है !

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