Friday, December 9, 2016



About Films

Satya Prakash's POV



फिल्म "बिग नथिंग"
एक छोटी सी निर्बोध बच्ची डालरो की अम्बार से एक नोट निकालती है और उसपर , ख़ाली जग़ह पर चित्रकारी करती है ! बेखबर है उन डॉलरों की अपार सत्ता और ताकत से ! वो है तो उसके लिए खाना है, दूध है , किताब है और पेन है और वो खूबसूरत घर भी जिसमे वो बैठकर चित्रकारी करती है डॉलर पर ! एक फिल्म " BIG NOTHING " का सबसे आखिरी सीन या यूँ कहे फिल्म का क्लाइमेक्स है ! फिल्म के इस एन्ड से पता चलता है कि निर्देशक , डायरेक्टर जीन-बाप्टिस्ट एंड्रिया ने बच्ची एमिली के नैतिकवान शिक्षक - पिता चार्ली के गहरे अधः-पतन की वास्तविक कहानी कह देता है और फिल्म में ईमानदार और बेमान पुलिस के बीच की टकराहट और उनकी हत्या के साथ क्रूर पूँजीवाद का क!ला चेहरा दीख जाता है ! २००६ में बनी ये फिल्म २००८ का दुनिया की "भयानक पूंजीवादी-आर्थिक-पतन" की भविष्यवाणी कर देती है ! बहुत सारे देश आज भी उस आर्थिक मंडी से नक़ल नहीं पाया है ! भारत का जनगण अपनी कृषि-पेशा के बाहुल्य की वजह से अपनी सारी दारुन दिक्कतों के बाद भी जीवित रहता है लेकिन लोगों की परेशानियां बढ़ती गयी हैं और आज नोटबंदी की वजह से देश का जनगण सच में आर्थिक मंदी का शिकार हुआ है और लोग अपनी रोज़ी खो कर सडको पर आ गए हैं !



फिल्म BIG NOTHING के अंदर की विद्रूपता , हिंसा ,बेमानी भी देश में बढ़ सकता है ! फिल्म की एक टीन-एज्ड महिला किरदार BLACKMAIL कर थैलियम का लिक्विड पिलाता है तो बैंगलोर का रेड्डी का कार-ड्राइवर को आत्म-हत्या करने पर मज़बूर किया जाता है ! मानवीय सभ्यता का स्खलन !! भगत सिंह के शब्दों में ," दुनिया बड़ी तल्ख़ निर्मम है , जीने के लायक नहीं है ! इसे जीने लायक बनाने के लिए लड़ना होगा !
सरकार इस फिल्म की उस निर्बोध बच्ची की तरह हो जिसे ये चिंता नहीं कि डॉलर क्या चीज़ है लेकिन उसकी सारी ज़रुरत उस घर में मौजूद हो ! 
लेकिन क्या हम अपनी सरकार से ऐसी अपेक्षा रख सकते हैं ? सरकार फिल्म मेकर को ऐसी फिल्म बनाने पर रोक न लगे ,क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है ? क्योंकि फिल्म तो हमारे समाज के हलचलों के दबाव को लेकर बनती है या कुछ फिल्म ऐसी बनती है जो उस समय तो नहीं घटती लेकिन दो-तीन साल में ऐसी घटना घट जाती है लेकिन फिल्म का कथानक उस समय के समाज से ही पैदा होता है !

फिल्म "Big Nothing " बहुत बड़ी फिल्म तो नहीं या बहुत तकनीक फिल्म ही हो लेकिन फिल्म के अंदर अमानवीय-कु-कृत्यों की अविरल प्रवाह में भी एक अच्छी बात कह जाती है कि दुनिया उस निर्बोध बच्ची की तरह होना चाहिए !






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