Sunday, December 18, 2016





About Films 

Satya Prakash's POV

 

In search of a character in West Bengal for film
"Thinking of Him"

Soumyadip Sarkar is a student artist belonging to Shantiniketan,Bolpur Kolkata. He is a very good actor,singer and good human being. Sudden selection of an important character called Abhik who inspires Felix to introduce an  elephant,philosophizing. we,elephant and each element belong to Universe.So, no need to have fear with elephant and anything of universe.Being there in universe has great logic to balance the components of Universe.





Abhik is an instrumental character who frees Felix from his guilt.


I remained worried of selecting this character during shooting of our film "THINKING OF HIM" in Shantiniketan. Few students gathered to see our shooting on the roadside in Campus. Cut of the shot increases my tension because director Pablo Cesar has upset me to choose a guy for this character who does not have acting experience and he can not speak English.The sound of cut moves me in other direction and my eyes began to glisten. A young boy of age 14-15 years is standing among many boys and girl students,looking at our shooting.I screamed like a victorious man and all startled to see me as if they were asking as to what happened. Are you fine ? 


Pablo Cesar feels uneasy but I did not care and I called the boy from standing crowd of students.She was awe-stunned as to why he was being called. Some sort of worries faltered his advancement towards me.My eyes are so involved and my olfactory and acoustic sensory are unidirectional to him.He came and without asking anything,I called Mr.Pablo Cesar, asking him as to how this boy would be in the role of Abhik. Mr.Pablo Cesar jumped like anything.


We had called this boy .He had come with his father at our receptional hall of Bengal Tiger Hotel,Bolpur, West Bengal.His name is Soumyadip Sarkar but he is very popular student because of hissinging and acting talent in Shantiniketan.So he has another nick name Tatai Sarkar.



Soumodeep Sarkar is a superb class of acting and he has delivered very good. His interaction with co-actor Hector Bordono who is suffering from a confusion and guilt is really utmost upbeat.
Soumodeep was picked up for the character of Abhik for the film "THINKING OF HIM" and he sang the song for this film too.
For the first time, he traveled in Airoplane from Kolkata to New Delhi for a small shoot in dense forest of Yamuna. The matching of jungle of Bolpur, nearer to Shantiniketan was stunningly proximate to that of selected jungle of Yamuna.


The Elephant is a living animal character of the film.Without elephant, guilt of Felix being played by Hector Bordoni of Argentina can not be shrugged off , can not be got rid off. Buts have irked us much because we were not getting elephant in the region of Kolkata or anywhere in West Bengal.At last, we got elephant in New Delhi.We carved a small unit out of 140 crew unit.I flew with Soumodeep Sarkar,Argentinean team, Camera and sound unit for New Delhi.

We shot interaction among Abhik,Felix and elephant in three cutaway scenes in this jungle. 
Like other characters I had tiring but good experience for the film.I will come to you with those experiences.

Tatai Sarkar has fabulous voice structure.

https://youtu.be/mBs7HRcO68E


Listen to his song with guitar cover.

Saturday, December 17, 2016




About Films

Satya Prakash's POV

नोटबंदी : सरकार व् विपक्ष से जनता दूर
( फिल्म भी टली व रोज़गार भी ख़त्म )
नोटबंदी ने किसी की शादी टाल दी तो किसी का रोज़गार टल गया, किसी का रोज़गार छीन गया ! किसी ने अपनी ज़िन्दगी खो दी! एटीएम ने ज़िन्दगी के रफ़्तार को भी धीमा कर दिया !
मुझ पर गाज गिरी ! फिल्म का मुहूर्त होना था ! टल गया ! बड़ी मुश्किल से निर्माता मिल पाता है ! मिला लेकिन पता नहीं अब वो फिल्म कब शुरू करेंगे?फिल्म "थिंकिंग ऑफ़ हिम " की शूटिंग के बाद से सिलसिला शुरू हुआ था ! बहुत उल्लास में हमसब थे ! ८ नवम्बर की घोषणा के बाद आशंका तो हुयी थी लेकिन निर्माता ने कहा कि फिल्म तो हम बनाएंगे और ज़रूर बनाएंगे ! सफ़ेद रकम से बनाएंगे ! नए कलाकारों को लेकर बनाएंगे लेकिन ११ दिसम्बर का मुहूर्त निर्माता ने टाल दिया ! हम फुले ना समां रहे थे लेकिन उल्लास का गुब्बारा फुस्स होकर गिर गया ! निर्माता ने फ़ोन उठाना बंद कर दिया ! आज उनका फ़ोन ज़रूर अँधेरे में रौशनी के जगमगाने जैसा लगा और कहा कि कुछ दिनों में फिल्म विधिवत रूप से आरम्भ करेंगे !


नोटबंदी एक बहाना हो सकता है लेकिन पैसा का आवाजाही तो लगभग रूक सा गया है ! हमने चेक -भुगतान-प्रक्रिया से फिल्म "थिंकिंग ऑफ़ हिम" की शूटिंग पश्चिम बंगाल में पूरी की लेकिन प्रतिदिन की शूटिंग में खुदरा पैसा का खर्च होना ज़रूरी होता है ! निर्माता सूरज कुमार कुछ कॅश का भुगतान वॉउचर पर हस्ताक्षर करके करते थे ! फिल्म-निर्माण-प्रक्रिया में कुछ जूनियर आर्टिस्ट और दिहाड़ी पर काम करने वाले को प्रतिदिन खुदरा पैसा भुगतान करना पड़ता है लेकिन आज की तारीख में ये मुमकिन नहीं है ! स्थापित प्रोडक्शन हाउस की साख होती है तो इस तरह के कर्मिक भोजन और प्रतिदिन यात्रा -भत्ता पर काम कर रहे हैं ! इस उम्मीद से आगे निर्माता पैसा दे देंगे ! नए निर्माता की साख नहीं होने के कारण ऐसी प्रक्रिया अपनाना मुश्किल है ! हमारा निर्माता नया है!
ऐसा बहुत सारे नए फिल्म-प्रोजेक्ट और धारावाहिक टीवी शो के साथ हुआ है ! पुराना किसी तरह से मॅनेज हो रहा है !
किसी ने कहा कि नोटबंदी पर फिल्म क्यों नहीं बनाते ? बहुत मुश्किल है सेवा-भाव से जुड़े लोग नोटबंदी पर फिल्म को सेंसर भी नहीं होने देंगे ! देश का सत्तर साल का भ्र्ष्टाचार , काला धन एक झटके में ख़त्म हुआ है और नोटबंदी पर सकारात्मक व्यंग्य को लेकर बनने वाली फिल्म क्यों जनता की बीच जाने देंगे !
काला-धन स्विस-बैक से कैसे भारत आता है और हर आदमी के बैंक अकाउंट में पंद्रह लाख रुपये जमा हो जाता है ! अगर ये फिल्म बनती तो देश का प्रधानमंत्री भी खुश हो जाते लेकिन शायद ये अब न बने ! हम कालाधन से आज़ाद भारत में एक काला राजनीतिक इतिहास-निर्माण-प्रक्रिया की तरफ बढ़ रहे हैं ,शायद सत्तर सालों के इतिहास से मुक्त एक नए प्रकार का काला-राजनीतिक -इतिहास-निर्माण ! सरकार और विपक्ष की सहभागिता से ही ऐसा संभव है !
सत्तर साल के इतिहास को बनाने या बिगाड़ने में मेरा, आपका, सारी पार्टियों का भी योगदान होगा ! हमारी सरकार इनसे आज़ाद होना चाहती है ! कन्हैया कुमार का "आज़ादी का नारा" का असर इस सरकार पर भी है ! देश का तकनीकी , सौर-ऊर्जा , वैज्ञानिक संसथान , अंतरिक्ष-विज्ञान , बड़े-बड़े उद्योग , नव-रत्न , बड़े-बड़े-विश्विद्यालय , स्कूल , देश के अंदर सरकारी हॉस्पिटल का अच्छा-खास नेटवर्क, कंप्यूटर , डिजिटल इंडिया , बड़ी-बड़ी , लंबी सडकों से आज़ादी का एक नया इतिहास कायम होगा !
हमारी या किसी की ज़िन्दगी के सपनो के लिए संघर्ष और उपलब्धियों से आज़ादी ज़रूरी है ! सरकार और विपक्ष अब एक जैसा लग रहा है ! शायद सरकार विपक्ष की इस भूमिका से खुश भी हो ले लेकिन सरकार और उसको संचालित करनेवाली भाजपा भी मौन जनता की आँखों में एक सवाल लिए टहल रही है ! जनता को इन राजनीतिक पार्टीयों से भी आज़ादी चाहिए ! एक नए विकल्प की तलाश आज की नोटबंदी राजनीति से शुरू होना चाहिए ! वाम , दक्षिण , जातिवादी और सेंट्रिस्ट पार्टियों से आज़ादी !
हम तो गरीब जनता हैं ! हम तो बहुत चीज़ों से आज़ाद हैं ! लाइन में खड़ा करके हमारी ज़िन्दगी से भी हमें आज़ाद करा रहे हो !सरकार और विपक्ष के धरातल पर आने से लगता है कि कांग्रेस, समाजवादी , जेड यू, राजद , वामपंथ आदि सभी दक्षिणपंथ सरकार की " सत्तर-वर्षीय विकास के इतिहास से आज़ादी की प्रस्तावना" पर हस्ताक्षर कर चुके हैं !
श्रमिक वर्ग को रोटी मिले या न मिले , फिल्म बने या न बने ! वर्किंग क्लास सत्तर-वर्षीय विकास या उसके अंदर भविष्य के लिए छुपी सकारात्मक सोच से सरकार और विपक्ष को आज़ाद नहीं होने देंगे !


मामला पूरा आर्थिक है ! आर्थिक सरोकारों से ही ज़िंदगी और रोज़गार चलती है ! जाति और धर्म की तुष्टिकरण से नहीं ! मंदिरें भी नोटबंदी के समय कालाधन को सफ़ेद करने का केंद्र बना ! भ्र्ष्टाचार नोटबंदी से नहीं रुकेगी वरना बैंक से इतने बड़े पैमाने पर नए नोट नहीं निकलते !
सम्पूर्ण हिंसक राष्ट्रवाद का उभरता नाग आर्थिक उथल-पुथल में दब कर लहू -लुहान हो गया है ! इसे दूध पिलाने की कोशिश ज़रूर होगी लेकिन आर्थिक-मोर्चों पर विफल और नोटबंदी के बाद का आर्थिक मंदी जनता को तनाव से मुक्त नहीं रख पायेगा ! गौ-रक्षा, गौ-मूत्र , लव-जेहाद और घर-वापसी और हिंसक राष्ट्रवाद अर्थ -तंगी में दम तोड़ देंगे !

नोटबंदी के बाद या ३० दिसम्बर के बाद जनता खुद-ब-खुद अपना नेतृत्व हाथ को हवा में फैलाते करेंगी ! सरकार दबा नहीं सकेगी , कितने इंसानो से ये सरकार आज़ादी चाहेगी और विपक्ष को देख कर जनता भागेगी !
अभी भी संभल जाओ ! मुझे राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्त्ता नहीं बनना है ! गुस्सा आता है तो सत्य का उदघाटन हो जाता है !

Tuesday, December 13, 2016



About Films

Satya Prakash's POV



बॉलीवुड का राजा हार गया !
हम शाहरुख़ तुम्हारे फैन रहे हैं ! जनतांत्रिक सरकार है, लेकिन कही और चले गए ! मैंने तुझे लड़ते देखा है , हांफते देखा है ,लहूलुहान देखा है और जीतते भी देखा है लेकिन आज तुम हार गए
फिर भी तुम्हारी फिल्म "रईस" के लिए शुभकामना !
आज " ये दिल है मुश्किल "

"The King of Bollywood" loses his battle of Cinema.
We have been fan of you and your films.You have democratically elected Government but instead taking it to government, you have gone somewhere else.We have observed you fighting, Panting, bleeding and winning but today you have lost your battle.
Despite, Al The Best to your film RAEES.
Today,  heart is in distress and distraught !


Monday, December 12, 2016



About Films

Satya Prakash's POV


"अवाम का सिनेमा "
दुनिया गतिशील है ! आपको भी इसके साथ चलना पड़ेगा ! निर्मम प्रतियोगिता और व्यवहारिक दुनिया में आदमी आदमी से कटता जाता है !फीलिंग्स सिर्फ और सिर्फ अपने परिवार तक सीमित होती है ! इसके बाद की दुनिया बड़ी निर्मम और भयानक है लेकिन ज़िन्दगी के साथ दुनिया में जीने की चाह भी उतनी ही बनी रहती है जिसे हम उम्मीद कहते हैं ! इसीलिए सतत ,अविरल आशा और लड़ने की क्षमता के साथ काम करें, " सप्लाई और डिमांड " पर पूरी दुनिया आधारित है! हमसब की उपयोगिता इसी सिद्धांत पर होती है ! हम या तो सिनेमा के लिए डिमांड क्रिएट करवाते हैं तो सप्लाई हो जाते हैं और कलाकार , सुपर स्टार पैदा हो जाते हैं ! सिंपल सप्लाई भी होते रहते हैं जो उम्मीदों को ज़िंदा रखने के लिए और भी ज़रूरी होता है !

पूरी लड़ाई टेलीविजन और सिनेमा में प्रवेश और वहाँ रुके रहने की होती है ! चाहे वो अदाकार हो या लेखक या छायाकार हो या निर्देशक हो या निर्माता -हर आदमी कला की इस विधा से मोहब्बत करता है और बाज़ार के साथ चलने लगता है और बाज़ार का हिस्सा बन जाता है ! फिल्म के अंदर का ग्लैमर या फिल्म का कथानक फिल्म को व्यवसायिक बनाने पर ज़्यादा ज़ोर होता है ! लेकिन कुछ लोगों की लड़ाई अवाम के लिए फिल्म बनाने की होती है और ऐसी फिल्म बनती भी है लेकिन कमर्शियल फिल्मों ने दर्शकों के बड़े भाग की मानसिकता को बदल दिया है जो अवाम का सीमेम नहीं देख पाता है ! कमर्शियल फिल्म के लटके-झटके, बर्बोज़ संवाद और पुरुषवादी समाज की सेंसिटिविटी के हिसाब से औरत को ऑब्जेक्ट की तरह पेश करना, व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा के ज़रिये एक महानायक को पैदा करना और शेष किरदार खलनायक के ख़त्म होने पर खुश होना और यही हमारा दर्शक भी करता है ! अच्छी फिल्म को अखबारनवीसों से अच्छी समालोचना भी नहीं मिल पाती और मिल गयी तो निर्माता और निर्देशक खुश तो हो लेते हैं की चलो कुछ स्टार्स मिल गए..!


निराश होने लगे तो तुरंत अपने को चार्ज करें और फिर से बैटलफील्ड में जाएँ ! इनसबों के लिए बहुत ज़रूरी है कि आपके पास जीने के लिए पैसा हो , खाने ,पढ़ने, रहने और चलने के लिए पैसा हो तभी इस विशाल सिनेमा और टेलीविजन जगत के " सप्लाई और डिमांड " की लंबी कतार में इंतज़ार किया जा सकता है वरना बहुत मुश्किल है ! लोगों की अच्छी फीलिंग उन्हें अच्छा और मानवीय ज़रूर बना देती है और उनके बीच अच्छी बाते भी होती रहती हैं लेकिन फिल्म और टेलीविजन का प्रोडक्शन में पैसा लगता है और बहुत लगता है ! उसी को पाने की होड़ में निर्देशक, निर्माता पागलों की तरह भागते रहते हैं !




सिनेमा आवाम के लिए बने और फिल्मों में काम करने वाले देश और दुनिया के उस अवाम ( जनता ) से जुड़ने के लिए फिल्म बनायें तो एक सामूहिकता का भाव ( सेंस ऑफ़ कल्लेक्टिविज़म) के साथ सुपर हीरो और सुपर हीरोइन या सुपर राइटर -डायरेक्टर का स्टारडम को थोड़ा विराम देना होगा ! नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी ,मीना कुमारी, महबूब साहेब, बलराज साहनी ,गुरुदत्त , राजकुमार ऐ के हंगल , ओम पूरी उत्पल दत्त , बासु भट्टाचार्य ,सचिन देव बर्मन, गोविन्द निहलानी आदि ऐसे फ़िल्मी शख्स हैं जिन्हें भारतीय सिनेमा कभी विस्मृत नहीं कर सकता है ! शाहरुख़ खान के स्टारडम के पीछे उनकी अनवरत लड़ाई है और जो उन लड़ाईयों को नहीं भूलता , वो सामूहिकता को भी नहीं भूल सकता !


आज शोर्ट -फिल्म यू ट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया पर बनकर दौड़ती रहती है लेकिन स्टारडम और व्यक्तिपरक फिल्म ही बन रही है लेकिन वो हमें छूं नहीं पाती है क्योंकि समाज और उसके केंद्र में आदमी के संबंधों और सरकारों को केंद्र में नहीं डाला जाता है ! इन्टरनेट की फिल्म भी उसी विकृत मानसिकता से ग्रस्त औरत और मर्द के घिन आनेवाले दृश्यों का ही छायांकन होता है ..क्या एक फिल्म मेकर इंसान बना रहे तो ठीक है लेकिन फिल्म मेकर इस से पर होने लगता है तो पोर्न फिल्म बनाने लगता है और फिर वो अपने अंदर की सारी अच्छी फीलिंग और इमोशन को मारकर व्यक्तिवादी बनकर ऐसी फिल्म बनाकर पैसा कमाता है और ज़िंदा भर रहता है! समाज की सामूहिकता की उसे परवाह नहीं , उसे अपनी तरह की फिल्म दिखाने के लिए तैयार भर करने का प्रयास होता रहता है और हमारी पूरी व्यवस्था इसे समर्थन करती है और समाज को बाज़ार में बदल दिया जाता है ! लोग उपभोक्ता बन जाते हैं और समाज बाज़ार ! क्या फिल्म जाने-अनजाने समाज और आदमी को बदल रहा है ! मतलब सिनेमा आदमी और समाज को धीरे-धीरे ही सही बदलता है ! इन्टरनेट पर दौड़ने वाली शोर्ट फिल्म की गुणवत्ता पर न भी जाएँ तो कम से कम उनके कंटेंट पर ज़रूर ध्यान दे और सोचे ज़रूर कि हम कैसी फिल्म बना रहे हैं !


"अवाम का सिनेमा " हमेशा ज़िंदा रहेगा ! "मदर इंडिया " , वक़्त , तीसरी कसम , आवारा , श्री ४२० ,कागज़ के फूल ,प्यासा, मुन्ना भाई लगे रहो इत्यादि !

"सप्लाई एंड डिमांड " के अंतहीन लाइन में लगे फिल्मों के अंदर काम करने वाले अदाकार,अदाकारा तकनीशियन अपने अंदर के व्यक्तिवादी स्टारडम ( इंडिविजुअल स्टारडम) से इतने आक्रांत होते हैं कि एक लंबे समय की प्रतीक्षा के बाद वे बहुत कमज़ोर हो जाते हैं ! उनके अंदर का स्टारडम भी उनकी प्रतीक्षा को लंबा करा देता है !आसपास देखा जा सकता है और लेखक का अपना भोग यथार्थ भी है , कमज़ोर भी हुआ लेकिन सामूहिकता और सामाजिकता के सारे हलचलों से जुड़ा रहा और कुछ न कुछ करने की कोशिश जारी है !
"सप्लाई और डिमांड " का शिकार मत बने और हौसला बुलंद रखे !



Friday, December 9, 2016



About Films

Satya Prakash's POV



फिल्म "बिग नथिंग"
एक छोटी सी निर्बोध बच्ची डालरो की अम्बार से एक नोट निकालती है और उसपर , ख़ाली जग़ह पर चित्रकारी करती है ! बेखबर है उन डॉलरों की अपार सत्ता और ताकत से ! वो है तो उसके लिए खाना है, दूध है , किताब है और पेन है और वो खूबसूरत घर भी जिसमे वो बैठकर चित्रकारी करती है डॉलर पर ! एक फिल्म " BIG NOTHING " का सबसे आखिरी सीन या यूँ कहे फिल्म का क्लाइमेक्स है ! फिल्म के इस एन्ड से पता चलता है कि निर्देशक , डायरेक्टर जीन-बाप्टिस्ट एंड्रिया ने बच्ची एमिली के नैतिकवान शिक्षक - पिता चार्ली के गहरे अधः-पतन की वास्तविक कहानी कह देता है और फिल्म में ईमानदार और बेमान पुलिस के बीच की टकराहट और उनकी हत्या के साथ क्रूर पूँजीवाद का क!ला चेहरा दीख जाता है ! २००६ में बनी ये फिल्म २००८ का दुनिया की "भयानक पूंजीवादी-आर्थिक-पतन" की भविष्यवाणी कर देती है ! बहुत सारे देश आज भी उस आर्थिक मंडी से नक़ल नहीं पाया है ! भारत का जनगण अपनी कृषि-पेशा के बाहुल्य की वजह से अपनी सारी दारुन दिक्कतों के बाद भी जीवित रहता है लेकिन लोगों की परेशानियां बढ़ती गयी हैं और आज नोटबंदी की वजह से देश का जनगण सच में आर्थिक मंदी का शिकार हुआ है और लोग अपनी रोज़ी खो कर सडको पर आ गए हैं !



फिल्म BIG NOTHING के अंदर की विद्रूपता , हिंसा ,बेमानी भी देश में बढ़ सकता है ! फिल्म की एक टीन-एज्ड महिला किरदार BLACKMAIL कर थैलियम का लिक्विड पिलाता है तो बैंगलोर का रेड्डी का कार-ड्राइवर को आत्म-हत्या करने पर मज़बूर किया जाता है ! मानवीय सभ्यता का स्खलन !! भगत सिंह के शब्दों में ," दुनिया बड़ी तल्ख़ निर्मम है , जीने के लायक नहीं है ! इसे जीने लायक बनाने के लिए लड़ना होगा !
सरकार इस फिल्म की उस निर्बोध बच्ची की तरह हो जिसे ये चिंता नहीं कि डॉलर क्या चीज़ है लेकिन उसकी सारी ज़रुरत उस घर में मौजूद हो ! 
लेकिन क्या हम अपनी सरकार से ऐसी अपेक्षा रख सकते हैं ? सरकार फिल्म मेकर को ऐसी फिल्म बनाने पर रोक न लगे ,क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है ? क्योंकि फिल्म तो हमारे समाज के हलचलों के दबाव को लेकर बनती है या कुछ फिल्म ऐसी बनती है जो उस समय तो नहीं घटती लेकिन दो-तीन साल में ऐसी घटना घट जाती है लेकिन फिल्म का कथानक उस समय के समाज से ही पैदा होता है !

फिल्म "Big Nothing " बहुत बड़ी फिल्म तो नहीं या बहुत तकनीक फिल्म ही हो लेकिन फिल्म के अंदर अमानवीय-कु-कृत्यों की अविरल प्रवाह में भी एक अच्छी बात कह जाती है कि दुनिया उस निर्बोध बच्ची की तरह होना चाहिए !






Friday, November 18, 2016

About Films


Satya Prakash's POV


The production of film "THINKING OF HIM" has ended with gusto, clapping and big hugs in Buenes Aires, Argentina.

This film has many features like it is a cross-cultural film between India and Argentina. East meets West.This film is love-oriented film. 

Amor film between Nobel Laureate Rabindranath Tagore and Argentinean authoress Victoria Ocampo.

Few images of the film will throw the light of my saying of the film.The images are mixed too. Off the camera images are also herewith.

Co-production

Johnson-suraj Films International, India & Cesar Films, Argentina
Me as an associate director for the film.





















                    

Wednesday, November 9, 2016


About Films


Satya Prakash's POV

Working still of our International English Film

"THINKING OF HIM"

Shooting working stills( BLACK & WHITE)

Few working pictures from on-going film shoot of "THINKING OF HIM" in Buenos Aires,Argentina after shooting in West Bengal, India. These are black & white working stills because,Gurudev Tagore and his muse Victoria Ocampo interacted and their relations sprouted as intimate amigo( intimate friend) in terms of platonic love.


The film "THINKING OF HIM" has coloured portion of film too on 35mm reel.

Entire film is being shot on Arri 435 camera. 



Victor Bannerjee as Rabindranath Tagore,
Eleonora Wexler as Victoria Ocampo
Gironimo Toubes as Elmihrst
Co-production: Indo-Argentinian production
Johnson-Suraj Films International,India & Cesar Films, Argentina


co-producers
Suraj Kumar & Pablo Cesar

DOP: CARLOS ESSMANN


I am associated with this film as one of the directors





Wednesday, November 2, 2016



About Films


Satya Prakash's POV


Happy BIrth Day to Shahrukh Khan


Shahrukh Khan is a real protagonist of Bollywood. Whatever he is, he is because of hard struggle and dedication to the acting.Like others, he had not God-father in the industry. He has created a space of success , observing the ripples of failures and success of many film stars.He has been riding the sea of success, rowing his ship against the conducive and opposite waves.


First I saw Shahrukh Khan while studying in MA in JNU, New Delhi. Shahrukh was doing a TV Show "FAUZI" that was being telecast on DD 1. DD was watched out by all India audience through DTH. Hardly a new satellite TV channels emerged. Shahrukh was doing a hero in the TV Serial and his counterpart heroine was none other than Manjula Avatar who used to be M.Phil student in JNU,New Delhi.


Shahrukh used to come there for interacting with Manjula but he was so courteous and sweet that he aired his hands to everyone.

I met with him shaking hands. Many times, we exchanged our smiles.

I interacted with Shahrukh Khan in a state of perturb at the loss of his beloved professional of Bollywood.



The TV SERIAL " Fauzi" was very popular show and Shahrukh Khan got his popularity too. He struggled in Mumbai and he has maintained his height as KING OF BOLLYWOOD.



Shahrukh has been extempore at issues of the world either in Hindi, Urdu and English.H has been a person of guts. He loved a girl of Delhi's high society : Gauri and with a lot of resistance, he made Gauri of his bride.


                          


Shahrukh Khan had not seen any amount of defeat. He speaks on any issue of life and country with conviction withing legal limit. If he is at fault, he seeks apology. He is the man of highest degree of values that have root in Indian soil. He is progressive and Secular .World knows of Shahrukh because of his benign nature and dealing with the people.
 
He is grown up with his failure and success. This is the great height where Shahrukh is standing as King of Bollywood.

On the eve of his birth day, I wish Shahrukh to have a long, healthy and success life.