Sunday, December 17, 2017


About Films


Satya Prakash's POV



सिंधिया -थरूर, कांग्रेस-भाजपा और इतिहास-कला
शशि थरूर को फिर से इतिहास पढ़ने को कांग्रेस नेता ज्योतिर्दित्य सिंधिया ने कहा है ! सिंधिया को अपने अतीत राजतन्त्र और उसकी क्रूरता पर अभिमान है ! राजतन्त्र में भी हरम होते थे सिर्फ मुगलों, नबावों के यहाँ ही हरम होते थे , ऐसा नहीं है ! जब एक रजवाड़े का दूसरे रजवाड़े से युद्ध होता था तो विजेता की पैनी निगाह हरम पर ही होती थी क्योंकि औरत राजतन्त्र में पटरानी,रानियों का ज़रूर दर्ज़ा प्राप्त कर लेती थी लेकिन इनकी संख्या सैकड़ो और हज़ारों में होती थी ! राजतन्त्र का विरोध इसीलिए होना चाहिए की औरत गुलामों की ज़िन्दगी गुजरने के लिए अभिशप्त थी लेकिन प्रजाओं के लिए वो महारानी , रानी होती थी और राजा औरत के लिए युद्ध भी करते थे ! हरम में औरत राजाओं के काम-पिपासा के लिए थी लेकिन युद्ध में हारने के बाद ये जौहर कराती थी ! रानी पद्मावती ने भी १२००० औरतों के साथ अग्नि-कुंड में कूद गयी थी ! सती-प्रथा में जैसे पत्नी को मृतक पति के साथ जलना पड़ता था ! औरत सिर्फ पुरुष की भोग्या है ! पुरुष ख़त्म तो उसकी पत्नी को जौहर करा दो , सती बना दो या विधवा बनाकर सारे जीवन वीतरागी बना कर रखो ! कांग्रेस नेता ज्योतिर्दित्य सिंधिया को इतिहास की इस क्रूरता पर गौरव है तो वो अभी तक राजत्व के अवशेष बाहर निकल नहीं पाए हैं ! उन्हें पता नहीं की ये लोकतंत्र है , देश में एक संविधान है ! फिर तो उन्हें अपनी दादी राजमाता सिंधिया और बया मुख्यमंत्री राजे सिंधिया की तरह भाजपा में होना चाहिए ! यूँ भी को ठिकाना नहीं ! दोनों के बीच आदान-प्रदान होते रहते हैं !
इतिहास की इस घटना पर सिंधिया जी का क्या विचार हो सकता है?
संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम गाथा के पीछे युद्ध और षड्यंत्र का इतिहास भी है ! कन्नौज के राजा जयचंद्र की सुपुत्री संयोगिता , मोहम्मद गोरी और पृथिवीराज चौहान की कहानी पर करनी सेना और सिंधिया को क्रोध क्यों नहीं आता ? राजा जयचंद संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की शादी न हो ,१७ बार युद्ध हुआ था ! जयचंद ने मोहम्मद गोरी को आमंत्रित किया था ! इसमें जाति मत तलाश कीजिये , इसे सिर्फ प्रेम के लिए युद्ध मानिये ! व्यक्तिरूप से मैं प्रेम को जाति और धर्म के पूर्वाग्रहों से ऊपर मानता हूँ और प्रेम इसीलिए किसी को किसी से हो सकता है ! प्रेम में युद्ध राजतन्त्र में होता था ! लोकतंत्र में प्रेम करने की आज़ादी है लेकिन लोकतंत्र ने अब ऐसा रूप ले लिया है कि ध्रुवीकरण हो जाता है और चुनाव में जीत का रास्ता आसान हो जाता है ! इसीलिए अंतर्जातीय और अंतर-धार्मिक शादियों पर आज राजनीती होती है और लव-जिहाद, घर-वापसी जैसे धार्मिक-अवधारणाओं की रचना हुयी है ! सिंधिया ऐसी ही राजनीती का समर्थन करते दीख रहे हैं और इसीलिए पद्मावती फिल्म के बहाने अपनी ही पार्टी के शिक्षित और विद्वान नेता शशि थरूर पर हमला कर बैठते हैं क्योंकि उनके पक्ष में एक खास जाति का ध्रुवीकरण मध्यप्रदेश के चुनाव में हो सके !कांग्रेस पार्टी पर इसीलिए अब लोगों का विश्वास काम हुआ है ! उत्तर भारत में कांग्रेस अगर उभर कर आएगी भी तो सिर्फ भाजपा के असफल होने से ! मध्यप्रदेश . छत्तीसगढ़ और हरियाणा में कांग्रेस की लौटने की संभावना बनी है लेकिन सिंधिया जैसे नेताओं की वजह से समीकरण बिगड़ भी सकते हैं ! ५-६ प्रतिशत वोट के चक्कर में विशाल जनता का समर्थन खो सकते हैं ! मेरे गावं में इस फिल्म को लेकर बहस चली और बहुसंख्यक ग्रामीण फिल्म के रिलीज़ होने के पक्ष में हैं ! जो जाति इस फिल्म का विरोध कर रही है,उसमें अधिकांश लोगों ने करनी सेना के उबाल के पीछे राजनीति और साज़िश बताया !
कुछ दिन पहले फिल्म " इंदू सरकार" का विरोध कांग्रेस पार्टी कर रही थी ! फिल्म को जब सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट दे दिया तो उसे रिलीज़ होने दीजिये ! विरोध के बावजूद रिलीज़ हुयी लेकिन क्या कांग्रेस की सरकार होती तो ये रिलीज़ हो पाती ? बिलकुल नहीं ! क्योंकि इन्होने पहले भी फिल्म " किस्सा कुर्सी का" और "आंधी " जैसी फिल्म को प्रदर्शित नहीं होने दिया था ! कोई भी पार्टी क्यों नहीं अपनी गलतियों के इतिहास से सबक लेती है ! फिल्म आइना है, आप खुलकर और ठन्डे मन से ज़रूर देखना चाहिए ताकि उन ग़लतिओं से सबक ले सके ! अगर फिल्म अच्छी नहीं है तो उस पर आलेख लिखें, सेमीनार आयोजित करें और बहस करें ! कांग्रेस और भाजपा को बहस से डर रहता है क्योंकि इनके अंदर लोकतंत्र का अभाव है! इसीलिए विरोध और मतभेद को बर्दाश्त नहीं कर पाते ! भाजपा और इसके समर्थन करनेवाले बहुत सारे हिंदूवादी संगठनों में धैर्य तो बिलकुल नहीं है ! भाजपा फिल्म का समर्थन कर रही है लेकिन उनके नेता और मंत्री नहीं ! गुजरात में भाजपा फिल्म पद्मावती के विरोध में है ! उत्तरप्रदेश में मंत्री चेतन चौहान विरोध में खड़े हैं !
हॉलीवुड और जर्मनी में हिटलर के पक्ष-विपक्ष में फिल्म बनी है लेकिन कोई तोड़-फोड़ नहीं क्योंकि वहां वंश की राजनीति ख़त्म हो चुकी है ! कला, साहित्य और सिनेमा का विरोध यूरोप और देश के दूसरे हिस्सों में सेमिनार में बहस के ज़रिये होते हैं !
दुनिया का सारा इतिहास द्वंद्वात्मक और वर्ग की अवधारणा पर आधारित होती है ! राजा का वंश ही राज्य करता था न की उनकी जाति के लोग ! उनकी जाति के लोग भी आम प्रजा या रियाया की तरह ही राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारी को कोर्निश करते होंगे ! उनकी जाति के लोग भी गरीब होते होंगे ! उनकी जाति के लोगों के घरों से भी खूबसूरत लड़किओं को राजा अपनी बहुत साड़ी रानिओं में शामिल करते होंगे क्योंकि वो राजा था क्योंकि उसे इश्वर ने राजा बनाया है ! लेकिन ऐसा नहीं है ! नहीं तो युद्ध कभी नहीं होते !
इसीलिए फिल्म " पद्मवती " का विरोध करनेवाले राजपूत करनी सेना अपने समुदाय के लोगों को जाति -विशेष के नाम पर जो हिंसक बना रहे हैं , उन्हें विवेक रहित कर रहे हैं , उन्हें वोट बैंक बना रहे हैं ! लोकतंत्र को कमज़ोर कर रहे हैं और यही काम कांग्रेस नेता ज्योतिर्दित्य सिंधिया कर रहे हैं !
कला, साहित्य और सिनेमा को रौंदकर प्रधानमंत्री मोदी जी भी देश का सर्वांगीण विकास नहीं कर सकते हैं और साढ़े तीन साल में इन्होने तय कर लिया है कि हमारा विकास गायगोबर, जुमला है ! कांग्रेस की वापसी की संभावना बन तो रही है लेकिन जो भाजपा कर रही है ,कांग्रेस भी वही करेगी तो फिर भाजपा के लिए रास्ता आसान बनेगा ! फिल्म -निर्देशक संजय लीला भंसाली और फिल्म-नायिका दीपिका पादुकोण के सर काटने वाले को करोडो रुपये इनाम देने वालों के साथ अगर कांग्रेस के नेता खड़े दिखेंगे तो कांग्रेस-भाजपाका फ़र्क़ तो ख़त्म ही समझो !
फिल्म " पद्मावती" का रिलीज़ डेट बढ़ गया है , शायद गुजरात चुनाव के बाद होंगे ! अब तो गली-गलौज और तोड़-फोड़ बंद करो मेरे वीरगाथा के रसगंगा में बहनेवालों शूरवीरों !

No comments:

Post a Comment