About Films
Satya Prakash's POV
Film " BAHUBALI" & "BAHUBALI 2"
फिल्म " बाहुबली"----एक जादुई दुनिया .
विजुअल इफ़ेक्ट और एनीमेशन देखना है तो फिल्म से रागात्मकता होगी वरना ये फिल्म ये फिल्म प्रकांतर से राजा-रानी के बच्चों के राजा बनने की पुरानी कहानी है ! रात में सोते समय दादी और नानी जो कहानी सुनाती थी, उसे ही विशेष दृश्यात्मक प्रभाव से हिंसा को और भी रक्तरंजित करके निर्देशक ने परोस दिया है ! बाहुबली का पहला भाग से ये बोध हुआ था और मैंने इस फिल्म के ज़रिये अपनी दादी,परदादी, नानी को याद कर लिया था ! वो राजा और उसके घर के साज़िश और युद्ध के ताने-बाने अपनी स्थानीय बोली के शौर्य में सुनाती थी ! हम सारे बच्चे सोते ही नहीं थे और उन्हें कहते थे ..और फिर...! परदादी फिर से शुरू होती थी और हमारी नींद को उडा देती थी ! फिल्म" बाहुबली" की चर्चा इसीलिए भी हो रही है कि इस फिल्म का कथानक के ऊपर फिल्म के शिल्प का और खासकर डिजिटल शिल्प का प्रभाव दर्शक को बेचैन कर देता है , ठीक उसीतरह से जैसे संयुक्त -परिवार के सभी बच्चे बरामदे में पडी बिस्तर पर परदादी से कहते थे कि भीष्म पितामह ने ऐसा क्यों किया ? कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था !
फिल्म " बाहुबली" २ के पास दर्शकों की बेचैन करनेवाली और बेतहाशा दौड़ का कारण भी यही है ! ये भी है लेकिन इसे बताने में सिने-शिल्प का जो वितान गढ़ा गया है ,वो अनुपम ही नहीं , मनमोहक है बिलकुल किस्सागोई करती परदादी, दादी और नानी की तरह !
फिल्म के शिल्प में कथानक का लोप भी हो जाए तो दर्शक फिर भी धड़कते दिल से फिल्म को देखता रहता है!
फिल्म तकनीकी-कला है लेकिन फिल्म उत्तर-तकनीकी कला का उत्तरार्ध की कला है जिसमें डिजिटल वर्ल्ड के सभी रंगों में दर्शक रंग जाते हैं ! एक जादू की दुनिया !
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