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Satya Prakash's POV
भूत और मंत्री
जमीदोंज था वो, ,
लोग कहते हैं,
शायद अब भूत
बन गया है !
सुनसान , बंज़र ज़मीन
को
पार करता,
वो अब शहर पंहुचा है
!
भूत-भूत का
शोरगुल,
चांदनी भी
भी तो नहीं ?
कभी अंधेरें में ओझल,
कभी रौशनी में
,
भूत होने का
भय
सच में,
अब और
बढ़ गया है!
खिड़कियां बंद होने
की
जुम्बिश,
वो सिहर उठता
है !
चारों तरफ निगाहें दौड़ जाती
है ,
बाज़ार है सुनसान!
पुलिस की जीप
की आवाज़ ,
वो दौड़ पड़ता
है ,
जीप की
तरफ ,
खिडकियों से झाँकती
आँखें ,
अद्भुत ढंग से
परेशान हैं ,
भूत पुलिस
से शेक हैण्ड
करता है ,
जीप में वो
बैठता है !
आँखों से ज़्यादा,
अब खिड़कियां खुल गयी है!
देह अब खिडकियों
से बाहर
निकल आया है ! ,
भूत चारों तरफ
देखता है ,
तेज़ी से बैठ
जाता है,
और जीप तेज़
गति से
आँखों से ओझल
!
खिडकियों से झांकती
आँखें
जब अचानक,
खिडकियों से लटके
देह को देखते
हैं,
तो भय से
चीत्कार
उठते हैं!
लोग श्रद्धा से नत-मस्तक है!
वो पुलिस के
साथ,
रंगीन कपड़ों में
अब घूमता है!
लोगों से
बातें करता है,
हाथ मिलाता है
,
रात होते ही,
शानदार बंगला
रौशनदान हो उठता
है ,
स्कॉच की नशा
को
इक कमसिन और भी
सुर्ख कर देती
है !
पुलिस -जीप अब
उसकी कार के
पीछे -पीछे
चलती है !
उसका हर पल,
अब उत्सव
है ,
जब वो कम्बल
बांटता है,
तो हँसता है
,
जब खाना बांटता
है ,
तो हँसता है
,
जब तमाचा और
गाली देता है
तो हँसता है
,
जब आदमी को
गोली मारता है
,
तो हँसता है !
लोगों को ज़मींदोज़
करता है,
तो हँसता है
!
उसका गायब होना
नाटक था !
आज भूत, मंत्री
है !
रोज़ उत्सव मनाता
है !
By: Satyaprakash Gupta
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