Monday, February 6, 2017



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Satya Prakash's POV




भूत और मंत्री


जमीदोंज था वो,  ,
लोग कहते हैं,
शायद अब भूत बन गया है !
सुनसान , बंज़र ज़मीन को
पार करता,
वो अब शहर पंहुचा है !
भूत-भूत का शोरगुल,
 चांदनी भी भी तो नहीं ?
कभी अंधेरें में ओझल,
कभी रौशनी में ,
भूत होने का भय
सच में,
अब और
बढ़ गया है!
  खिड़कियां बंद होने की
जुम्बिश,
वो सिहर उठता है !
चारों तरफ निगाहें  दौड़  जाती है ,
बाज़ार है सुनसान!

पुलिस की जीप की आवाज़ ,
वो दौड़ पड़ता है ,
 जीप की तरफ ,
खिडकियों से झाँकती आँखें ,
अद्भुत ढंग से परेशान हैं ,
 भूत पुलिस से शेक हैण्ड करता है ,
जीप में वो बैठता है !
आँखों से ज़्यादा,
अब खिड़कियां खुल गयी है!
देह अब खिडकियों से बाहर
निकल आया है ! ,
भूत चारों तरफ देखता है ,
तेज़ी से बैठ जाता है,
और जीप तेज़ गति से
आँखों से ओझल !
खिडकियों से झांकती आँखें
जब अचानक,
 खिडकियों से लटके
देह को देखते हैं,
तो भय से चीत्कार
उठते हैं!

लोग श्रद्धा से नत-मस्तक है!
वो पुलिस के साथ,
रंगीन कपड़ों में
अब घूमता है!
 लोगों से बातें करता है,
हाथ मिलाता है ,
रात होते ही,
शानदार बंगला
रौशनदान हो उठता है ,
स्कॉच की नशा को
इक कमसिन और  भी
सुर्ख कर देती है !

पुलिस -जीप अब उसकी कार के
 पीछे -पीछे चलती है !
उसका हर पल,
 अब उत्सव है ,
जब वो कम्बल बांटता है,
तो हँसता है ,
जब खाना बांटता है ,
तो हँसता है ,
जब तमाचा और गाली देता है
तो हँसता है ,
जब आदमी को गोली मारता है ,
तो हँसता है  !
लोगों को ज़मींदोज़ करता है,
तो हँसता है !

उसका गायब होना नाटक   था !
आज भूत, मंत्री है !
रोज़ उत्सव मनाता है !     

By: Satyaprakash Gupta

 


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