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Satya Prakash's POV
फिल्म "रईस" और "काबिल" का मूल्याङ्कन साम्प्रदयिक चश्में से न करें !
"कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता"! और डॉन ने मूसा को और उसके धर्म के नाम पर किया गया धंधा को उड़ा दिया ! मूसा को मार डाला ! डॉन का पश्चाताप ये था की मोहल्ला बचाते-बचाते शहर जला दिया! डॉन ने देश की साझा-संस्कृति को बचाते-बचाते सीने पर गोलियां खा कर मर गया ! हिन्दू राजीतिज्ञ ने डॉन का खूब इस्तेमाल किया और जब मौका मिला तो सत्ता और विपक्ष के नेता एक होकर डॉन को रास्ते से हटा दिया !विधायक बना डॉन की लोकप्रियता ने उनदोनो हिन्दू मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता को यूँ डराया कि उसे मार कर चैन की बांसुरी बजाना शुरू कर दिया !
डॉन की संवेदनशीलता तो मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता से बेहतर है ! डॉन के गैरकानूनी धंधे में मुख्यमंत्री, विपक्ष और पुलिस तक शामिल है तो फिर कहाँ से फ़र्क़ पड़ता है कि सियासत चलाने वाले डॉन से बेहतर है ! ये तीनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं! फिर भी डॉन की संवेदनशीलता इन दोनों से बहुत ही खूबसूरत है ! लेकिन तीनों इसी सड़ांध -सी भिनभिनाती व्यवस्था की उपज है ! हमारा विरोध इन व्यवस्था से है , इसे ख़त्म होना चाहिए ! फिर कोई डॉन और न कोई ऐसा भृष्ट राजनीतिज्ञ पैदा होगा !
जिस चीन को आये दिन गाली दी जाती है और उनके सामान के इस्तेमाल करने का विरोध किया जाता है , वहां भृष्ट मंत्री और दागी नेता को फांसी की सजा दी जाती है ! कहोगे वहां तो जनतंत्र नहीं फिर हमारे यहाँ तो जनतंत्र है , न्यायलय है और व्यामपम भी है ..लोगों की हत्याएं हो रही है ! क्यों नहीं सजा दी जाती है ? हेलीकाप्टर-घोटाला में केंद्र से लेकर छत्तीसगढ़ के मंत्री और बेटे दागी होते हैं ! स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में भ्रष्टाचार किया जाता है ! अगर सिनेमा इन भ्र्ष्टाचार को दिखाता है और किरदार कोई मुस्लिम अभिनेता करता है तो वो उस फिल्म को धर्म के नज़रिये से देखता है ! मान ले कि फिल्म
"रईस " में डॉन का किरदार शाहरुख़ खान की जगह अक्षय कुमार या अजय देवगन निभाता तो क्या इस फिल्म को सांप्रदायिक चश्में से देखा जाता ? फिल्म
"Once Upon A Time In Mumbai " में अजय देवगन ने १९७० के बॉम्बे के डॉन सुलतान मिर्ज़ा की भूमिका की लेकिन सांप्रदायिक राजनीति ने इस फिल्म या अजय देवगन के खिलाफ आवाज़ नहीं उठायी ! इसी फिल्म की अगली कड़ी
" Once Upon A Time In Mumbai Dobara " २०१३ में अक्षय कुमार ने मुम्बई के बहुत बड़े डॉन शोएब खान ने किया था जो
middle east तक उसका अपराधी नेटवर्क था ! अक्षय कुमार ने उसकी भूमिका निभाई जिसने १९९३ की मुम्बई बॉम्बिंग में जब्बर्दस्त भूमिका निभायी थी ! अगर अक्षय की जगह कोई मुस्लिम अभिनेता होता तो कुछ हो-हंगामा ज़रूर होता ! इसी फिल्म "रईस" में अभिनेता अतुल कुलकर्णी एक शराब-बेचनेवाला अपराधी है जो छोटे-छोटे बच्चे को शराब की सप्लाय में लगाता है ,किरदार के रूप में एक हिन्दू अपराधी व्यप्पारी जयराज है और अभिनेता नरेंद्र झा जो मूसाभाई की भूमिका की है , सोने की बिस्कुट के बदले उसके अंदर बम भेजता है जिससे गुजरात में कई जगह लोग मर जाते हैं ! फिल्म के अंदर अभिनेता चरित्र निभाता है , अभिनेता का धर्म हिन्दू हो या मुस्लिम हो या पारसी!
फिल्म "क़ाबिल" के कॉर्पोरेटर की भूमिका में माधवराव सेलार का भाई अमित शेलार और उसका दोस्त वासिम दोनों मिलकर अंधी लड़की का बार-बार बलात्कार करते हैं ! अंधी लड़की जान जाती है , ये दोनों बार-बार आएंगे और ऐसा ही करेंगे और वो आत्महत्या कर लेती है और फिल्म फिर उस अंधे नायक के प्रतिशोध से ख़त्म हो जाती है ! किरदार कौन है , मराठी है और हिन्दू है तो क्या इस फिल्म " काबिल" को मराठी मानुष को विरोध करना चाहिए ? बिलकुल नहीं !सवाल फिर उठता है ! लेकिन फिल्म हमें झकझोड़ती है !
व्हाट्सएप्प पर इस फिल्म के खिलाफ एक लंबा लेख घूम रहा है जिसमें शाहरुख़ खान ने गुजरात के मुस्लिम डॉन को महिमामंडित किया है ! अब फिल्म बनाना भी इनसाम्प्रदायिक, धार्मिक कट्टरोंं से सीखा जाए क्या ? फिल्म
"रईस" और फिल्म "काबिल" दोनों ही अपनी पटकथा और फिल्मिंग ट्रीटमेंट में लाजवाब है लेकिन भाजपा सांसद ट्ववीट करता है और भाजपा का मध्यप्रदेश का विधायक भी "काबिल" देखने की सलाह देता है ! मुझे तो दोनों फ़िल्में अच्छी लगी ! कला व् सिनेमा को साम्प्रदायिक चश्मे से देखने का ट्रेंड मोदी-सरकार के आते ही शुरू हो गया !
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इसी तरह से धीरे-धीरे जनमानस का हिसा बन जाता है जो इस बहुलतावादी भारत के लिए खतरनाक है !
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इसी तरह से धीरे-धीरे जनमानस का हिसा बन जाता है जो इस बहुलतावादी भारत के लिए खतरनाक है !
फिल्म को अपने समाज और इतिहास की घटनाओं का दृश्यात्मक विवरण देते रहना चाहिए
फिल्म को अपने समाज और इतिहास की घटनाओं का दृश्यात्मक विवरण देते रहना चाहिए !
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