Wednesday, February 10, 2016





About Film

Satya Prakash's POV


NIDA FAZALI : A TRIBUTE 


Nida Fazali has been one of the leading Urdu-Hindi poets who kept composing for Bollywood films, for late great Gazal singer Jagjeet Singh and for many magazines. He has authored more than thirty books. Nida Fazali must be heard in Hindustani Language . 
घर से मस्जिद है बहुत दूर 
चलो यूँ कर ले ,
किसी रोते हुए बच्चे को 
हसाये जाए !
--शायर निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली यूँ छोड़ कर गए कि अदब की दुनिया में सूनापन सा छा गया लेकिन अपनी अदब की विरासत से इस दुनिया को मालामाल कर गए ! किताबों में उनकी शायरी हो या फिल्मों में उनकी शायरी को तरन्नुम मिला हो ..वो हर जगह, हमारे साथ हैं , साथ रहेंगे ! अदब, ग़ज़ल और फिल्मों की दुनियां में सफर करता हुआ खुद इस दुनिया से सफर कर गया इंसान हमें सकते में कर गया है लेकिन हक़ीक़त यही है !
उनकी बातों में कशिश ऐसी कि आप उन्हें सुनते चले जाएंगे !! किस्सागोई सी थी ! मुंबई को बरसो से देखा ! पूँजी के खेल का दबाव इंसानों पर होते देखा, आदमी के चेहरों पर पड़े दुःख-अवसाद को अपनी गहरी नज़रों से देखा-परखा और इस पर भी लिखते चले गए ..गोया ये उनकी अपनी कहानी हो ! इक बड़े शायर का मिज़ाज़ भी ऐसा ही होता है ! दूसरे के दर्द को अपनाकर शिद्दत से लिखते रहना और शायरी की दुनिया में एक खूबसूरत दुनिया को बसा लेना ..ये भी इक बड़ा शायर निदा फ़ाज़ली ही कर सकते थे ! उन्होंने अपने चह्नोंवालों की एक दुनिया भी बनाई थी लेकिन कुछ लोगों को व अच्छे नहीं लगते थे और तब लिखते थे :
उसके दुश्मन हैं बहुत , आदमी बहुत अच्छा होगा !
कई किताबों में हमारी ज़िन्दगी की रवानगी छोड़ गए हैं ! आँखों और ख्वाब के दरम्यान ,लफ़्ज़ों के पुल , दीवारों के बाहर ,शहर मेरे साथ चल तू और भी कई किताबें हैं जिन्हें पढ़कर आदमी इंसान बन सकते हैं :
गिरिजा में मंदिरों में अजानों में बंट गया 
होते ही सुबह आदमी खानों में बंट गया
इक इश्क नाम का जो परिंदा खला में था 
उतरा जो शहर में तो दुकानों में बंट गया
बहुत सारी फ़िल्में निदा फ़ाज़ली के गीतों से सुहागन बनी ! सिसकियाँ, यात्रा , बीवी ओ बीवी ,देव, बस इतना सा , सरफ़रोश आदि फिल्मों में ! 
सरफ़रोश फिल्म की शायरी
हम लबों से कह ना पाये , उनसे हाल-ऐ -दिल कभी ,
और वो समझे नहीं , ये ख़ामोशी क्या चीज़ है !
निदा फ़ाज़ली को Film Fare Award उनके गीतों के लिए मिलें..और देश में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने की दिशा में उनके कार्य को "कम्युनल हारमनी अवार्ड " भी मिला ! फ़ाज़ली साहेब का हिंदी -उर्दू-साहित्य में उल्लेखनीय अवदान के लिए अवार्ड न मिला , शायद उनके बेबाक होने की वजह से !
बांद्रा में कई बार उन्हें मुग्ध होकर देखा और सुना ..खास कर उनकी बातचीत ! मैं क्या सभी उनसे मुखातिब उनको सुनते थे ! काश ! इक तस्वीर होती उनके साथ तो मेरी दुनियां भी मुक्कम्मल होती !
निदा फ़ाज़ली साहेब को भावभीनी श्रधान्जली !!!!!!!!!!!

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