About Film
Satya Prakash's POV
" फिल्म बजरंगी भाईजान : - वास्तविक दुनिया का बाबू बजरंगी खलनायक क्यों बन गया ?
बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों में कुछ अच्छी फ़िल्में बहुत बड़ी बात कह जाती है ! सलमान की बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्म " बजरंगी भाईजान " दो मुल्कों की भोली- भाली जनता और उनकी एक-दूसरे के लिए मोहब्बत का एक खूबसूरत नमूना है ! " मामू ,मामू की आवाज़ सरहद और कश्मीर घाटी में गूँज उठती है ! बच्ची शहीदा और बजरंगी भाई का मिलाप सारी राजनीतिक और धार्मिक नफरतों को ख़त्म करती है और दोनों देशों की सरकारों और सियासतों को एक खूबसूरत सलाह फिल्म देती है ! गूंजती फ़िज़ाओं की आवाज़ एक प्रतीक है और कहती है कि इन नफरत की दीवारों को ख़त्म कर दो !दोनों मुल्कों की जनता उस बच्ची की निर्मल, निश्छल और निर्दोष आवाज़ की तरह ही हैं लेकिन दोनों मुक्कों के छद्म-राष्ट्रवाद इन्हें भड़काता रहता है ! आतंकवाद जन्म लेकर हज़ारों इंसानों की हत्या करता है ! इस फिल्म के भीतर दोनों मुल्कों की जनता, अपनी ख़बरों को बेचने वाला असफल पत्रकार चाँद नवाव और सरहद पर खड़ा फौजी दोनों मुल्कों के बीच खूबसूरत पुल का निर्माण करते हैं ! गूंगी शहीदा के गले से अचानक फूटती आवाज़ दोनों मुल्कों की बेचैन और मुखर आवाज़ है !
बजरंगी भाईजान हनुमानभक्त है , धार्मिक है , शाकाहारी है लेकिन छ साला बच्ची मुन्नी ( बाद में पता चला ये तो शहीदा है ) को बजरंगी और उसकी प्रेमिका ( करीना कपूर) एक होटल में चिकन खिलाते हैं ! बजरंगी के धार्मिक पूर्वाग्रह धीरे-धीरे ख़त्म होते हैं और वो गंगा-यमुना तहजीव का प्रतीक बन जाता है ! वो धार्मिक ज़रूर है लेकिन मासूम इंसान है ! मुन्नी ( शहीदा) उसे पाकिस्तान भेजने के क्रम में जिस्मफरोशी के बाज़ार में पंहुचा दी गयी मुन्नी को अपनी जान पर खेलकर वापस लाता है और बिना पासपोर्ट और वीज़ा के पाकिस्तान पहुंच जाता है ! बजरंगी भाई जान एक खूबसूरत इंसान के रूप में उभर कर सारे धार्मिक -पूर्वग्रह से ऊपर उठकर एक महानायक बन जाता है ! कभी-कभी लगता है कि हमारी वास्तविक दुनिया का बाबू बजरंगी खलनायक क्यों बन गया ?
पिछले साल २०१४ में एक छोटी बजट और बिना स्टार अभिनेता की फिल्म " फिल्मिस्तान" आयी थी जो सरहद के नज़दीकी गावं में रहने वाले पाकिस्तानी ग्रामीण की हिन्दुस्त्तानियों के लिए मोहब्बत दिखाती है ! दोनों मुल्कों के अवाम एक तरह से ही सोचते हैं , एक तरह का खाना कहते हैं , एक तरह की फ़िल्में देखते हैं ! उस पाकिस्तानी गावं की रहने वाले बॉलीवुड की फ़िल्में देखते हैं और खूब देखते हैं ! इस फिल्म को दर्शकों ने सराहा लेकिन हिन्दुस्तान के बहुत बड़े दर्शक इस फिल्म को इसीलिए ज़्यादा देख नहीं पाये क्योंकि मुश्किल से कुछ थिएटर में ही इसे लगाया गया था !
फिल्म सम्प्रेषण का सशक्त और बड़ा माध्यम है , इसे भी नियंत्रण करने की कोशिश बरसों से हो रही है ! कुछ महीनों से फिल्म -सेंसर बोर्ड का हस्तक्षेप फिल्मों के प्रदर्शन पर बढ़ा है जो अच्छी बात नहीं है !
दुनिया के किसी भी देश में फिल्म का दर्शक होता है जो बनते होते हैं ! फिल्म एक बड़े व्यवसाय को पैदा किया है और इसमें भरी रकम लगती है और भाड़ी रकम का मुनाफा होता है ! इसीलिए फिल्म अब पूँजी का खेल ज़्यादा हो गया है और फिल्मों में लगी रकम कि वापसी निर्माता चाहता है , इसीलिए उनके हिसाब से मसाला फ़िल्में बनती हैं और दर्शक उनके लिए धीरे-धीरे बनते चले जाते हैं या यूँ कहें कि धीरे-धीरे दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा मानसिक रूप से इन फिल्मों को देखने के लिए तैयार हो जाता है !
फिल्मों में कॉर्पोरेट के आते ही इसने मल्टीप्लेक्स का निर्माण कर अपने लिए अमीर -दर्शक भी पैदा कर लिया है जिन्हें ढाई घंटे का मनोरंजन चाहिए !
अच्छी फिल्मों में ये दर्शक बहुत कम जाते हैं ! फिल्म "मसान " एक सशक्त कहानी पर एक अच्छी फिल्म बनी है जिसे कान फिल्म महोत्सव , फ्रांस में दो फिल्म-पुरुस्कार मिले है लेकिन इसे हिन्दुस्तान में बहुत कम थिएटर मिले है और छोटी तथा स्टार न होने का भी असर है और दो बड़े फिल्मों "महाबली" और "बजरंगी भाईजान" के बीच फिल्म" "मसान" को प्रदर्शित किया गया है ! फिर भी दर्शक मसान देख रहे हैं लेकिन उम्मीद है धीरे-धीरे इस फिल्म मसान को देखने जाने वाले दर्शकों की सख्या बढ़ेगी !
बजरंगी भाईजान, फिल्मिस्तान , वीर-ज़ारा हाल के दिनों में कुछ अच्छी फ़िल्में हैं जो भारत-पाक की जनता की धड़कते दिल को एक खूबसूरत उचाई पर ले जाता है !
Film“Bajarangi Bhaijaan” :-why Babu Bajrangi reduced to a villain in real world
Bollywood makes awesome movie sometimes that
scintillates the neurons of audiences across the globe. Salman Khan’s released
film “ Bajarangi Bhaijaan” is a cross-cultural film and is a great showcase of
love of people of two countries. The echoing and chiseled voice of six year old
innocent and cute dumb girl Shaheeda (
Munni) on the rocky and flowing river path of the border of India and Pakistan
fills the aromatic air of affection, egalitarian and better world of two
countries . The people of Pakistan and India defy the border and allow the
protagonist Bajrangi Bhaijaan to go to his country.
“Mamu,
mamu” begins enchanting the people across the fence of two countries.This fence
lies in Kashmir Valley that has been bone of contention of two nations since
their inception and bombarding and human loss across the boundary has wounded
the humanism but keep making governments
on both sides by paraphrasing the Nationalism to whip up the religious identity
to the level of fanaticism.
The voice “ Mamu, Mamu” is a cinematic voice
metaphor that says of no to boundary between them, love must flow instead of
concocted hatred. “Mamu, Mamu” suggests both the government of two nations to
destroy the wall of hatred as their boundary.
Bajrangi
Bhaijaan is a religious Hindu, believing in Hindu rituals. He is vegan but he
and his love-heart Kareena take Munni ( Shaheeda) to a hotel where they feed
non-veg food. Bajrangi comes to know of her belongings to Pakistan but he does
not find Passport and Visa. His painful and empathetic concern is to send Munni
to Pakistan and he believes an agent in New Delhi and provides huge money to
take the child Munni to Pakistan but agent reaches the brothel to see the
baby. Bajrangi does not care of his life
and he brings back the baby Munny and decides to go to Pakistan to give Munni
to her parents and he reaches with a lot of hurdles, leaving all sorts of
religious prejudices aside and finds that the common people of Pakistan help
him with great surprise and delight. His religious prejudices starts periling
into a great humanism and that is the rich culture of India : GANGA-YAMUNA TAHZZEB – a
composite culture of India that has been emerging for hundreds of years.
Audiences
must have churned as to why Babu
Bajrangi reduced to a villain in our real world .
Salman
has stunned in performing his character. He looks different from his previous
films in which Salman Khan looks a superman but Bajrangi Bhaijaan is seemingly
a common man who struggles to reach Pakistan with the help of Pakistan and
comes back to India with their help only. Pakistan’s unsuccessful journalist
Chand Nawab, gentry and even the military defy the order of a crooked the
higher authority’s official order. This is the real ethos of people of two
countries that were one before 1947.
Such
a film must be made more to educate the politicians of the country. In 2014, a
film “ Filmistan” was released in India in less number of theatres with no
publicity but it has registered its impression on the neurons of audience. This
film defies all religious prejudices and concocted political impasses and shows
love and affection of villagers of the border area of Pakistan towards India
and Indian Cinema.
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